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कविता

गाय

मंजूषा मन


वो अपने परिवार के लिए
गाय ढूँढ़ रहे हैं,
गाय जो कुछ न बोले
गाय जो कुछ माँगे
खूँटे से बँधी रहे,
अपना अमृत देकर
परिवार का पालन करे,
जो, जब जितना मिले खा ले
उनके जूठन पर खुश रहे,
जो दे सके
परिवार को
बैल/साँड़...
उन्हें अपने परिवार के लिए
बहू नही
गाय की तलाश है।


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